आलोचना >> ज़माने से दो दो हाथ ज़माने से दो दो हाथनामवर सिंह
|
0 |
प्रस्तुत संग्रह में नामवर जी के गत दो दशकों में दिये गए अनेक व्याख्यानों एवं वाचिक टिप्पणियों के साथ दो आलेख शामिल हैं
प्रो. नामवर सिंह हिन्दी का चेहरा हैं। उनमें हिन्दी समाज, साहित्य-परम्परा और सर्जना की संवेदना रूपायित होती है। वे न सीमित अर्थों में साहित्यकार हैं और न आलोचक। वे हिन्दी में मानवतावादी, लोकतांत्रिक और समाजवादी विचारों की व्यापक स्वीकृति के लिए सतत संघर्षशील प्रगतिशील आन्दोलन के अग्रणी विचारक हैं। स्वातंत्रयोत्तर भारतीय समाज और राजनीति की जनपक्षधर शक्तियों को उन्होंने अपनी वैचारिकता, आलोचकीय प्रतिभा और लोकसंवेदी-तर्कप्रवण वक्तृता से निरन्तर मजबूत किया है। वे देश में समतावादी समाज का सपना सँजोये रखनेवाली सामाजिक शक्तियों के पक्ष में सामंतवादी-पुनरुत्थानवादी शक्तियों और पूँजीवादी शक्तियों से निरन्तर मुठभेड़ जारी रखनेवाले वैचारिक योद्धा हैं। उन्होंने जहाँ एक ओर धर्म, लोक, परम्परा और संस्कृति के मानवीय मूल्यों पर जोर देनेवाली विरासत की सटीक व्याख्या की है, वहीं इनको उपकरण बनाकर सामाजिक भेदों को स्वीकृत करानेवाले बौद्धिक प्रयत्नों के खिलाफ हमलावर तेवर भी अपनाए हैं। उन्होंने परम्परा और आधुनिकता के मूल्यांकन की प्रगतिशील परम्परा को आगे बढ़ाया है। प्रस्तुत संग्रह में नामवर जी के गत दो दशकों में दिये गए अनेक व्याख्यानों एवं वाचिक टिप्पणियों के साथ दो आलेख शामिल हैं, जिनमें भूमंडलीकरण, फासीवाद, सांप्रदायिकता, भाषा और संस्कृति के ज्वलंत सवालों पर नामवर जी के विचार हिंदी समाज की जड़ता को तोड़ने के क्रम में हमारे सामने आते हैं।
|